Monday 10 September 2018

धारा 377: देश के इस राज्य में सबसे ज्यादा दर्ज हैं समलैंगिक संबंधों के मामले

<p style="text-align: justify;"><strong>नई दिल्ली:</strong> भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत समलैंगिक यौन संबंध को लेकर दर्ज मामलों की संख्या के लिहाज से उत्तर प्रदेश सबसे आगे है और उसके बाद केरल का स्थान दूसरे नंबर पर है. सप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते इस कानून को आंशिक रूप से रद्द कर दिया था.</p> <p style="text-align: justify;">धारा 377 के तहत 2014 से 2016 के बीच कुल 4,690 मामले दर्ज किए गए. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार, 2016 में समलैंगिक यौन संबंधों के 2,195 मामले जबकि 2015 में 1,347 और 2014 में 1,148 मामले दर्ज किए गए.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>इन राज्यों में दर्ज हुए सबसे ज्यादा मामले</strong> 2016 में समलैंगिक संबंधों के सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज हुए. अकेले उत्तर प्रदेश में ही समलैंगिकता के 999 मामले सामने आए. इसके बाद केरल 207 मामसों के साथ दूसरे स्थान पर था. वहीं दिल्ली में धारा 377 के तहत 183 मामले दर्ज किए गए जबकि महाराष्ट्र में ऐसे 170 मामले दर्ज किए गए.</p> <p style="text-align: justify;">ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार 2015 में भी धारा 377 के तहत सबसे ज्यादा 239 मामले उत्तर प्रदेश में ही दर्ज किए गए. उसके बाद दूसरे नंबर पर केरल और महाराष्ट्र रहे जहां धारा 377 के तहत 159-159 मामले दर्ज किए गए. हरियाणा में 111 मामले सामने आए थे जबकि पंजाब में 81 ऐसे मामले दर्ज किए गए.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>377 के तहत पीड़ित नाबालिगों में भी उत्तर प्रदेश रहा नंबर वन</strong> आंकड़ों की मानें तो 2015 में देश में दर्ज हुए 1,347 मामलों में से 814 मामलों में पीड़ित बच्चे थे. इन 814 मामलों में से 179 उत्तर प्रदेश में, 142 केरल में, 116 महाराष्ट्र में और 63 हरियाणा से थे.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>समलैंगिकों को अदालतों से मिल सकेगी राहत</strong> गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि सहमति से समलैंगिक यौन संबंध के आरोपियों पर जो मुकदमा चल रहा है या जिनकी याचिकाएं समीक्षाधीन हैं, उन्हें सुप्रीम कोर्ट के 6 सितंबर के फैसले से अब राहत मिल सकेगी. हालांकि, जिन मामलों में पीड़ित नाबालिग हैं, उनमें आसानी से राहत मिलने की संभावना नहीं है.</p> <p style="text-align: justify;">उन्होंने कहा कि सहमति से समलैंगिक संबंध मामलों में, सुप्रीम कोर्ट का फैसला आरोपियों के लिए एक बड़ी जीत है क्योंकि वो अब इस फैसले का हवाला देकर अदालत से राहत ले सकेंगे.</p> <p style="text-align: justify;">अधिकारियों ने कहा कि वयस्कों के बीच सहमति से यौन संबंध बनाने वाले मामले में सुनवाई कर रहे न्यायाधीश के सामने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का उल्लेख करने से सुनवाई को रद्द किया जा सकता है.</p>

from home https://ift.tt/2oVi3dO

Labels: ,

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home