#HumanStory: बहुमंजिला इमारतें बनाने वाले बेघर मजदूर की आपबीती...
ये तबका लिली के फूल या छिटकती चांदनी पर कविता नहीं करता. क्रांति की आग भी इनमें नहीं दिखती. दिखता है तो दिन से रात तक सुलगते-भीगते मौसमों में काम का जज़्बा. छूते मैली पड़ें, ऐसी चमकदार इमारतें बनाते ये मजदूर भी ख्वाब देखते हैं- भरपेट खाने का. और कर्ज उतारकर गांव लौटने का.
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