#HumanStory: नेत्रहीन की दास्तां, 'हमारे सपनों में तस्वीरें नहीं, आवाज होती है
कॉलेज फर्स्ट ईयर में उससे मुलाकात हुई. नाम था मार्था. बोलती तो मुंह में रूह अफजा की खुश्बू तैर जाती. हाथ मिलाए तो जैसे खरगोश हथेलियों में दुबका हो. देख नहीं सकता था, आवाज से शख्सियत बुन डाली. हसीन, नाजुक, मक्खन की डली जैसी! तब पहली बार आंखें न होने का मलाल हुआ.
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