Wednesday 15 August 2018

क्या आप जानते हैं कौन हैं 'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा' गीत के रचयिता, कहां लिखा गया था ये गीत

<p style="text-align: justify;"><strong>कानपुर</strong>: "विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा" गीत आपने कई बार सुना होगा पर क्या आप जानते हैं कि इसके रचयिता श्याल लाल गुप्ता (पार्षद) ने यह गीत जेल के अन्दर लिखा था. श्यामलाल गुप्ता जलिया वाले बाग़ हत्या कांड से बहुत आहत थे. उस वक्त मारे गए लोगों की याद में उन्होंने झंडा ऊंचा रहे हमारा गीत की रचना की थी. जब उन्होंने पहली बार यह लाइनें पंडित जवाहर लाल नेहरु के सामने फूल बाग़ के मैदान में गाईं तो पंडित नेहरु ने उन्हें गले से लगा लिया था.</p> <p style="text-align: justify;">श्यामलाल लाल गुप्ता का जन्म कानपुर के नर्वल गांव में 16 सितम्बर 1983 में हुआ था. श्यामलाल गुप्ता बहुत ही साधारण परिवार से थे उनका बचपन बेहद गरीबी में बीता था. बचपन से ही उन्हें साहित्य से गहरा लगाव था. पिता विश्वेश्वर प्रसाद और मां कौशल्या देवी उन्हें पांच बेटो में सबसे ज्यादा प्यार करते थे. लेकिन श्यामलाल गुप्ता को सबसे ज्यादा देश की आजादी से प्यार था.देश की आजादी के लिए उन्होंने सन 1921 में संकल्प लिया था कि जब तक देश आजाद नहीं हो जाएगा तब तक नंगे पैर ही रहेंगे.</p> <p style="text-align: justify;"></p> <p style="text-align: justify;"><a href="https://static.abplive.in/wp-content/uploads/sites/2/2018/08/15104215/images-1-1.jpeg"><img class="alignnone wp-image-939443 size-full" src="https://ift.tt/2KOCm53" alt="" width="619" height="496" /></a></p> <p style="text-align: justify;">श्यामलाल गुप्ता की मुलाकात गणेश शंकर विद्यार्थी से हुई और इसके बाद वो आजादी की लड़ाई में कूद पड़े. अपनी जब श्यामलाल गुप्ता सचिव पत्रिका का संपादन कर रहे थे तो अपनी लेखनी से अंग्रेजों को जवाब देते थे. श्याम लाल गुप्ता नमक आन्दोलन, भारत छोड़ो आन्दोलन समेत कई आंदोलन में शामिल रहे. कांग्रेस ने फतेहपुर का जिलाध्यक्ष बनाया था. कई मोर्चों में सामिल रहे श्यामलाल कोउस दौरान फतेहपुर की जेल में अंग्रेजों ने 6 बार बंद किया और उन्हें बैरक नंबर 9 में रखा गया.</p> <p style="text-align: justify;">श्यामलाल गुप्ता ने झंडा ऊंचा गीत 3 मार्च 1924 को लिखा था. उन्होंने इस गीत को पहली बार कानपुर के फूल बाग़ मैदान में जलिया वाले बाग़ में मारे गए लोगों की याद में गाया था. जब यह गीत पंडित जवाहर लाल नेहरु ने सुना तो उन्हें गले से लगा लिया था. उस वक्त उन्होंने कहा था यह गीत अमर होगा. आजादी के बाद इस गीत को लाल किले से भी गाया गया था और इस गीत को ''झंडा गीत'' के नाम से नवाजा गया था.</p>

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