Thursday 12 July 2018

Sacred Games Review: नेटफ्लिक्स जैसे सोने के कटोरे में अनुराग कश्यप ने मांगी 'भीख'

<p style="text-align: justify;"><strong>Sacred Games Review:</strong> अगर किसी ज़माने में ‘सेक्रेड गेम्स’ सिंगल स्क्रीन या मल्टीप्लेक्स पर रिलीज़ हुई होती तो संभव है कि इसे देखने वालों को इसके अद्भुत होने का एहसास हो सकता था. लेकिन जिसने ‘नेटफ्लिक्स’ पर 'हाउस ऑफ़ कार्ड्स' और '13 रीज़न्स व्हाई’ या एचबीओ की 'गेम ऑफ़ थ्रोन्स' जैसी सीरीज़ देख रखी है, ‘सेक्रेड गेम्स’ के लिए उसका एक रिएक्शन ये भी हो सकता है कि क्या है ये और क्यों है ये? सीरीज़ के प्रेडिक्टिबल होने का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि ओपनिंग सीन में खून से सना एक कुत्ता जब एक मल्टीस्टोरी बिल्डिंग से फेंका जाता है तब कोई अंधा भी बिना क्रेडिट्स देखे बता दे कि अरे, इसका डायरेक्टर तो अनुराग कश्यप होगा!</p> <p style="text-align: justify;">एकाध बातों को छोड़कर कश्यप ने इस सीरीज़ के पहले सीज़न के आठों एपिसोड में कुछ भी ऐसा नहीं किया जो आपने पहले नहीं देखा हो. नवाज़ का कैरेक्टर तो इतना क्लीशेड है कि कई बार आपको लगता है कि 'वासेपुर' का फैजल सबका बदला लेने वहां से मुंबई आ गया है. इसमें जो 'ईसा' हैं वो रामाधीर सिंह के किरदार से मिलते-जुलते हैं. इसको ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ का हैंगओवर माना जा सकता है, लेकिन ‘सेक्रेड गेम्स’ में डायलॉग से लेकर गैंगवॉर तक का एक भी सीन ऐसा नहीं है जिसे अनुराग वासेपुर के करीब ले जाने में सफल हो पाए हों.</p> <p style="text-align: justify;"><a href="https://static.abplive.in/wp-content/uploads/sites/2/2018/07/12113927/SACRED-GAMES.jpg"><img class="aligncenter size-full wp-image-910928" src="https://ift.tt/2KSdxdd" alt="" width="1000" height="491" /></a></p> <p style="text-align: justify;">क्लिशेड होने का स्तर यहां तक है कि अगर अनुराग का बस चले तो वो नवाज़ के कैरेक्टर की मां के कैरेक्टर को हर फिल्म/सीरीज़ में बदचलन बना दें. 'वासेपुर' के बाद नवाज़ के किसी किरदार ये दूसरी फिल्म/सीरीज़ है जिसमें उनके किरदार की मां चरित्रहीन है और इस वजह से वो बाकी दुनिया से अलग या ऊपर उठ गए हैं. वहीं, नवाज़ को अनुराग के अलावा कई और डायरेक्ट रंक से राजा वाले किरदार के कैरेक्टर में इतनी बार रंग चुके हैं कि अब उनको देखते ही लगता है कि अरे, ये तो बड़ा होकर बड़ा आदमी बनेगा. ये इसलिए भी घुटन देने वाला है कि 90 के दशक के बच्चे जब बड़े हो रहे थे तब उन्हें अमिताभ बच्चन से लेकर कई ऐसे एक्टर्स के किरादरों का रंक से राजा बनने की आदत पड़ गई थी. अनुराग की ‘ब्लैक फ्राइडे’, ‘गुलाल’, ‘उड़ान’ और ‘देव डी’ जैसी फिल्मों ने इस ट्रेंड को चकनाचूर कर दिया. वहीं, ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में उन्होंने इस ट्रेंड को कल्ट बना दिया. लेकिन सेक्रेड गेम्स' में वो 'बॉम्बे वेलवेट' की तरह औंदे मुंह गिर गए.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>ऐसा नहीं है कि इस सीरीज़ में कुछ नया नहीं है. इसकी चमक-दमक बिल्कुल नई है. हिंदी से जुड़ी किसी तरह की फिल्म या सीरीज़ में इतने बोल्ड तरीके से कभी किसी शी-मेल को नहीं दिखाया गया. वहीं, हिंदी से जुड़ी किसी तरह की फिल्म या सीरीज़ में कभी किसी रॉ की महिला अधिकारी को प्लाइंट ब्लैंक रेंज से गोली नहीं मारी गई. हिंसा के दृश्यों में कुल्हाड़ी का इतनी बेदर्दी से कभी इस्तेमाल नहीं किया गया. लेकिन बात फिर घूम-फिरकर वहीं पर आ जाती है कि देखने वाला जानता है कि अगर अनुराग कश्यप हैं तो इससे भी करारी चीज़ें देखने को मिल सकती हैं.</strong></p> <p style="text-align: justify;"><a href="https://static.abplive.in/wp-content/uploads/sites/2/2018/07/12113947/Sacred-Games-1.jpg"><img class="aligncenter size-full wp-image-910929" src="https://ift.tt/2Nchbvs" alt="" width="2000" height="1000" /></a></p> जाहिर सी बात है कि इस देश में गांधी परिवार को गाली देना अभी भी कोई आसान काम नहीं है. जो भी ऐसा कर रहा होता है, इसके सहारे कुछ बड़ा करने की कोशिश कर रहा होता है. लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद वरुण ग्रोवर के लेखन में ना तो ‘मसान’ वाला जादू है और कश्यप के डायरेक्शन में सैफी अली खान के सरदार पुलिस ऑफिसर के किरदार में भी वो जान नहीं दिखती जैसी इम्तियाज़ अली के ‘लव आज कल’ वाले सैफ के सरदार वाले किरदार में दिखती थी. कई दृश्यों में तो ऐसा लगता है कि अब ट्रांजिशन होगा और सैफ ‘एंड वी ट्विस्ट’ वाला गाना गाते चॉकलेट बॉय में बदल जाएंगे. फजीहत का आलम ये है कि एक सीन में जब फ्रस्टेट होकर सैफ चिल्ला उठते हैं तो उनकी फटी आवाज़ बता रही होती है कि पुलिस ऑफिसर का ये किरदार उनसे ना हो पाएगा. ये विक्रम चंद्रा की नॉवेल 'सेक्रेड गेम्स' पर बनी नेटफ्लिक्स पर पहली ओरिजनल भारतीय सीरीज़ है. इसमें मुंबई पुलिस के आलाकमान का करप्शन, नेता-पुलिस-गैंगेस्टर की सांठ-गांठ, फेक एनकाउंटर, पूरे डिपार्टमेंट में बस एक पुलिस वाले की ईमानदारी, गैंगवॉर, अंडरवर्लड का फिल्म इंडस्ट्री में दखल से लेकर हर एक बात जो इस सीरीज़ के पहले सीज़न में दिखाई गई है, आप पहले भी टुकड़ों में देख चुके हैं. हमारे यहां के फिल्ममेकर्स का रोना ये होता है कि सेंसर बोर्ड उनके काम पर कैंची चला देता है. ऐसे में इस मामले में कश्यप-ग्रोवर ग्रुप को नेटफ्लिक्स के रूप में सोना का कटोरा मिला था, लेकिन उन्होंने 'भीख' मांगी. <p style="text-align: justify;">अगर आपको इस सीरीज का पहला सीज़न अच्छा लगा तब तो बहुत अच्छी बात है. अगर नहीं लगा तो भी आपने इसकी सब्सक्रिप्शन के लिए जो पैसे भरें हैं उसकी वजह से निराश होने के बजाए आप यहां बहुत कुछ देख सकते हैं. यहां आपके लिए हॉलीवुड, बॉलीवुड से लेकर क्षेत्रीय फिल्मों, डॉक्युमेंट्री और सीरिज की भरमार है जिसे आप एक्सप्लोर कर सकते हैं.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>स्टारकास्ट-</strong> नवाजुद्दीन सिद्दीकी, सैफ़ अली ख़ान, राधिका आप्टे, नीरज काबी, जीतेंद्र जोशी, राजश्री देशपांडे, जतिन सरन <strong>डायरेक्टर-</strong> अनुराग कश्यप, विक्रमादित्य मोटवानी</p> https://youtu.be/28j8h0RRov4

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