Wednesday 25 July 2018

शिवसेना का पीएम पर वार- बड़ी बड़ी रैलियों के लिए कहां से आता है पैसा?

<p style="text-align: justify;"><strong>नई दिल्ली:</strong> शिवसेना का पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी पर आक्रमण अब लगातार तेज़ होता जा रहा है. पिछले हफ़्ते ही अविश्वास प्रस्ताव के मसले पर बीजेपी के लिए फजीहत का सबब बनी इस पार्टी ने आज एक बार फिर संसद में ही सरकार पर जमकर हमला बोला.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>भ्रष्टाचार पर कथनी और करनी में फ़र्क़</strong> लोकसभा में आज चर्चा तो भ्रष्टाचार निरोधक संशोधन बिल पर हो रही थी लेकिन शिवसेना ने इनके बहाने मोदी सरकार पर ही भ्रष्टाचार पर लचीला रवैया अपनाने का आरोप जड़ दिया. पार्टी के सांसद अरविंद सावंत ने लोकसभा में बीजेपी के बेंच की ओर इशारा करते हुए कहा कि भ्रष्टाचार पर बातें करना आसान है लेकिन उसपर अमल करना कठिन है. सावंत ने साफ कहा- "आपकी (बीजेपी) कथनी और करनी में बड़ा फ़र्क़ है".</p> <p style="text-align: justify;"><strong>'पीएम की रैलियों के लिए कहां से आता है पैसा'</strong> सावंत यहीं नहीं रुके. उन्होंने चुनावों को भ्रष्टाचार की जननी बताते हुए पीएम की चुनावी रैलियों पर ही सवाल खड़ा कर दिया. सावंत ने पूछा कि पीएम जो इतनी बड़ी बड़ी रैलियां करते हैं इसके लिए पैसे कहां से आते हैं. सावंत ने पूछा, आखिर इन रैलियों का खर्चा पार्टी उठाती है या सरकार?</p> <p style="text-align: justify;"><strong>पीएम को दी चुनौती</strong> लगे हाथ सावंत ने पीएम को एक चुनौती भी दे डाली. उन्होंने कहा कि जिस तरह आम सांसदों पर चुनावों के दौरान आचार संहिता लागू होती है वैसी ही पीएम पर भी लागू होना चाहिए. सावंत ने कहा कि पीएम भी आम सांसदों की तरह ही चुनाव अभियान चला कर दिखाएं. सावंत ने नोटबन्दी को लेकर भी पीएम और सरकार को घेरते हुए आरोप लगाया कि नोटबन्दी से न तो भ्रष्टाचार मिटा और न ही आतंकवाद.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>बीजेपी और शिवसेना में बढ़ रही हैं दूरियां</strong> दोनों दलों के बीच सियासी मतभेद लगातार बढ़ते जा रहे हैं. शिवसेना ने तो पहले ही ऐलान कर दिया है कि वो 2019 का चुनाव अकेले लड़ेगी. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी अपने कार्यकर्ताओं को अकेले चुनाव लड़ने के लिए तैयार रहने को कहा है. ऐसे में शिवसेना अब बीजेपी पर हमला करने का कोई मौक़ा हाथ से जाने नहीं देना चाहती. भले ही वो संसद के भीतर ही क्यों न हो.</p>

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