Monday, 28 May 2018

BLOG: बड़े मैचों को दबंग अंदाज में जीतना जानते हैं धोनी

<strong>ये कह नहीं सकते कि धोनी ऑस्ट्रेलिया की टीम के कितने बड़े फैन थे या हैं. लेकिन ये सच है कि जब धोनी ने क्रिकेट की दुनिया में कदम रखा था तब विश्व क्रिकेट पर ऑस्ट्रेलिया का दबदबा हुआ करता था. उन्होंने निश्चित तौर पर 2003 विश्व कप का फाइनल देखा होगा. तब वो भारतीय टीम का हिस्सा नहीं थे.</strong> अगले ही साल यानी 2004 में उन्हें टीम इंडिया कैप मिली थी. 23 दिसंबर 2004 को उन्होंने बांग्लादेश के खिलाफ वनडे करियर की शुरूआत की थी. इसके बाद अगले विश्व कप में तो वो टीम इंडिया का हिस्सा ही थे. उन्होंने वेस्टइंडीज में पहले ही राउंड में भारत का बाहर होना भी देखा. फिर कंगारूओं को फाइनल जीतते भी देखा. आशय इतना कहने भर का है कि उनके अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट करियर शुरू होने के बाद भी उन्होंने इस बात को देखा कि कंगारूओं की क्रिकेट के खेल में क्या दंबगई है. ऑस्ट्रेलियाई टीम उन दिनों ना सिर्फ सर्वश्रेष्ठ टीम थी बल्कि उन्हें बड़े मैचों को बड़े अंतर से जीतना आता था. बड़े बड़े टूर्नामेंट के फाइनल में पहुंचने वाली दोनों टीमें कमजोर नहीं कही जाएंगी. लेकिन फाइनल में ऑस्ट्रेलिया के प्रदर्शन का ग्राफ और उठ जाता था जिससे विरोधी टीम बहुत कमजोर दिखने लगती थी. आप 2003 का विश्व कप याद कर लीजिए. दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में ऑस्ट्रेलिया ने भारत को 125 रनों से हराया था. आप 2007 का विश्व कप फाइनल याद कर लीजिए. फाइनल मैच में ऑस्ट्रेलिया ने दक्षिण अफ्रीका को 83 रनों के बड़े अंतर से हराया था. अब आप रविवार को आईपीएल के फाइनल की स्कोरशीट देख लें. चेन्नई ने इस लीग की जबरदस्त टीम सनराइजर्स हैदराबाद को 8 विकेट के बड़े अंतर से धोया. यही दबंगई धोनी की कला है. <a href="http://static.abplive.in/wp-content/uploads/sites/2/2018/05/28104709/Kane-News.jpg"><img class="alignnone wp-image-871670 size-featured-top-thumb" src="https://ift.tt/2GTCSwF" alt="" width="580" height="395" /></a> <strong>मुकाबले में कहीं नहीं थी हैदराबाद की टीम</strong> हैदराबाद की टीम फाइनल में कहीं थी ही नहीं. या अगर थी भी तो सिर्फ तब तक जब तक चेन्नई के बल्लेबाज 179 रनों का पीछा करने के लिए मैदान में नहीं उतरे थे. एक बार चेन्नई मैदान में लक्ष्य का पीछा करने उतर गई तो फिर मैच कभी भी हैदराबाद के पक्ष में गया ही नहीं. फाफ ड्यूप्लेसी के आउट होने के बाद जिस तरह से वॉटसन और रैना ने बल्लेबाजी की उससे साफ था कि मैच को किस कदर मजबूती से पकड़ने को चेन्नई तैयार थी. रैना जब आउट हुए तो स्कोरबोर्ड पर 133 रन जुड़ चुके थे. यानी जीत के लिए 39 गेंद पर 46 रन चाहिए थे. इसके बाद हैदराबाद की कोशिशें बेकार थीं. शेन वॉटसन अकेले ही सब पर भारी थे. पूरे सीजन में जिन गेंदबाजों ने कमाल दिखाया था उन्होंने एक आखिरी जी तोड़ कोशिश की लेकिन उन कोशिशों का कोई नतीजा नहीं निकला. मैच में जब 9 गेंदें फेंकी जाने बाकी थीं तभी स्कोरबोर्ड पर चमक चुका था- चेन्नई सुपरकिंग्स चैंपियन. जिसके स्टार थे शेन वॉटसन. जिन्होंने 57 गेंद पर 117 रन बनाए. ये इस सीजन का उनका दूसरा शतक था. <strong>हैदराबाद को हर बार धोया</strong> ये बात भी दिलचस्प है कि इस सीजन में सनराइजर्स हैदराबाद चार बार चेन्नई सुपरकिंग्स के सामने आई. चारों बार उसे हार का सामना करना पड़ा. चेन्नई ने दोनों लीग मैच में हैदराबाद को हराया. फिर पहले क्वालीफायर में हैदराबाद को हराया. फिर फाइनल में भी हराया. फाइनल से पहले खेले गए मैच में तो फिर भी हैदराबाद की टीम चेन्नई के आस पास पहुंची थी लेकिन फाइनल में धोनी की टीम का स्तर और उपर उठ गया. हार के इस अंतर को आप देखिए तो आप समझ जाएंगे कि कैसे धोनी की टीम ने कैसे फाइनल में बिल्कुल ही अलग स्तर का खेल खेला. <a href="http://static.abplive.in/wp-content/uploads/sites/2/2018/05/28104742/Dhoni_Kane.jpg"><img class="alignnone wp-image-871673 size-featured-top-thumb" src="https://ift.tt/2J5QCcX" alt="" width="580" height="395" /></a> 22 अप्रैल को खेले गए लीग मैच में चेन्नई ने हैदराबाद को 4 रन से हराया था. 13 मई को खेले गए लीग मैच में चेन्नई ने हैदराबाद को 8 विकेट से हराया था. पहले क्वालीफायर में चेन्नई को 2 विकेट से हराया था. यानी एक लीग मैच और फिर पहले क्वालीफायर में चेन्नई और हैदराबाद का मुकाबला दिलचस्प था. हैदराबाद की टीम उन्हीं दो मुकाबलों के आधार पर चेन्नई का आंकलन करती रही जबकि चेन्नई ने फाइनल के लिए कुछ ज्यादा ही आक्रामक तैयारी कर ली थी. जिसके चलते उन्हें बड़े मैच में एक दबंग जीत हासिल हुई.

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